अथर्ववेद में कुश को अशुभता और नकारात्मकता को दूर करने वाला बताया गया है।
यह एक पवित्र घास है, जिसका प्रयोग पूजा और स्वास्थ्य के लिए भी किया जाता है। मत्स्य पुराण में वर्णित है कि कुश घास से ही भगवान विष्णु का शरीर बना था और यही वजह है कि वह बहुत शुभदायक है। मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी को स्थापित किया था। उसके बाद उन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तो उनके शरीर से बाल धरती पर गिरे और कुश के रूप में बदल गए। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए थे तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुश पर रख दिया था और इस कारण वह पवित्र हो गई।
पुराणों में वर्णित है कि जब किसी पर राहु की महादशा चल रही हो तो उसे कुश वाली पानी से स्नान करना चाहिए। इससे राहु के अशुभ प्रभाव से बचाव होता है। ऋग्वेद में भी वर्णित है कि प्राचीन समय में अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश का प्रयोग जरूर होता था।
आध्यात्मिक महत्व
कुश शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। बीच की उंगली यानी अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली होती है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। इसलिए कुश धारण करने से वह सारी ऊर्जा शरीर में ही रहती है।